ॐ
श्री सीता राम जय जय राम
मै केहि कहौं विपत्ति अति भारी |
श्री रघुवीर धीर हितकारी | १ |
मम ह्रदय भवन प्रभु तोरा |
तहँ बसे आइ बहु चोरा | २ |
तहँ कठिन करहिं बरजोरा |
मानहिं नहि विनय निहोरा | ३ |
तम, मोह लोभ, अहँकारा |
मद , क्रोध , बोध -रिपु मारा | ४ |
अति करहिं उपद्रव नाथा |
मरदहिं मोहि जानि अनाथा | ५ |
मैं एक , अमित बटपारा |
कोउ सुनै न मोर पुकारा | ६ |
भागेहू नहिं नाथ ! उबारा |
रघुनायक, करहुँ सँभारा | ७ |
कह तुलसीदास सुनु रामा |
लूटहिं तसकर तव धामा | ८ |
चिंता यह मोहिं अपारा |
अपजस नहिं होइ तुम्हारा | ९ |
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