Sunday, April 19, 2020

रामेश्वरम शिवलिंग स्थापना प्रषंग

ॐ राम रामाय नमः 

रामेश्वरम शिवलिंग स्थापना




रामेश्वरम शिवलिंग स्थापना: आचार्य रावण 


लंका पर विजय प्राप्‍त करने के लिए भगवान राम ने समुद्र किनारे शिवलिंग बनाकर शिवजी की पूजा की थी। इससे प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने उन्‍हें विजयश्री का आशीर्वाद दिया था। आशीर्वाद के साथ ही श्रीराम ने शिवजी से अनुरोध किया कि जनकल्‍याण कि लिए वे सदैव ज्‍योतिर्लिंग के रूप में यहां निवास करें। उनकी इस प्रार्थना को भोलबाबा ने सहर्ष स्‍वीकार किया और तब से रामेश्वरम में इस शिवलिंग की पूजा हो रही है। यानी यह शिवलिंग त्रेतायुग में स्थापित किया गया। 

परन्तु दक्षिण में लिखी राम कथाओं में महर्षि कम्बन कि इवरामअवताराम (रामायण ) में प्रषंग है जो वाल्मिकी और तुलसि रामायण में प्रायः नहीं हैं , वो प्रषंग अदभुद हैं !! 

महर्षि कम्बन कि रामकथा में लिखे प्रषंग के अनुसार जब प्रभु श्री राम रामेश्वरम पहुंचे तब उन्होंने जामवंत जी से कहा " आप कोई आचार्य या विद्वान पण्डित ढूंढ के लाये जो सैय और वैष्णव परंपरा में निपुण हो " जो मेरा विधिवत यज्ञ करवा सके और भगवान शंकर का विग्रह स्थापित करवा सके !
ये सुनकर जामवंत ने कहा प्रभु यहाँ समुद्र के किनारे जंगल में केवल वृक्ष और वनवासी है और हम में से भी कोई ऐसा मुझे नहीं दीखता है !
एक है जो पलष्त मुनि के नाती है, वैष्णव हैं और भगवान शंकर का भक्त भी हैं ! परन्तु वो हमारा शत्रु हैं !
तब श्री राम ने कहा आप एक बार जाकर बात करिये तो सही , ये सुनकर जामवंत जो आज्ञा कहकर चलदिये ,जब ये बात रावण को पता चली कि  जामवंत मुझसे मिलने आये हैं , तो उन्होंने राक्षसो से कहा "देखो जामवंत आ रहे हैं उन्हें यहाँ महल तक पहुँचने में किसी प्रकार का कष्ट ना हो और उन्हें आदर सहित यहाँ पहुचाये ! जामवंत मेरे पितामाह के मित्र रहे है और इसलिए मेरे लिए सम्माननीय हैं !
तब सभी राक्षश मार्ग में हाथ जोड़कर खड़े हो गए और हाथ जोड़े जोड़े महल का मार्ग बताने के लिए हाथ जोड़े जोड़े इशारा कर देते सभी राक्षश कथा के अनुशार जामवंत का शरीर देखकर भयभीत हो रहे थे !

जब जामवंत महल में पहुंचे तो रावण ने जामवंत के चर्ण स्पर्श करके प्रणाम किया और कहा "मै लंकापति रावण लंकापुरी में आपका स्वागत करता हुँ " कहिये मै आपकी किस प्रकार सेवा कर सकता हुँ ?

जामवंत : लंकापति रावण मै आपके पास मेरे यजमान का यज्ञ करवाने के लिए आपको आचार्य के लिए निवेदन करने के लिए आया हुँ !
रावण : आपके यजमान कौन हैं ?
जामवंत : लंकेश , मेरे यजमान महाराज दशरथ के पुत्र और अयोध्या के राजकुमार श्री राम है ! और वो अपनी किसी विशेष कार्य  हेतु भगवान शंकर का पूजन करना चाहते हैं और उनको कोई योग्य आचार्य चाहिए जो विधि पुर्वक यज्ञ करवाने में कुशल हो !
रावण :स्वीकर्ती से पूर्व मुझे विचार करना पड़ेगा और विचार करने में मुझे समय लगेगा , तो मै चाहता हुँ कि आप आशन ग्रहण करे  "जामवंत बैठ गए" क्या आप मुझे बताएँगे कि वो विशेष कार्य लंका पर विजय तो नहीं हैं ?
जामवंत : लंकेश ,आपने सही समझा उनका वो  विशेष कार्य  लंका पर विजय हि हैं ! क्या अब आप उनके आचार्य बनना स्वीकार करेंगे ?
रावण : (मन में विचार करते हुए कि मुझे आचार्य बनाने के लिए कौन व्यक्ति आया हैं ) निःसंदेह आप जाकर राम से केहदीजिये मै उनका आचार्य बनना स्वीकार करता हुँ !
जामवंत : अति उत्तम लंकेश ! क्या आप मुझे सभि वस्तुए बताएँगे जिनकि आवस्यकता पुजन में होगी ?
रावण : हे ! आदरणीय शाश्त्रो के अनुसार अगर यजमान घर से बाहर हो  तो सभी जरुरी वस्तुओं कि वयवस्था आचार्य को ही करनी होति हैं , आप तो मेरे यजमान से जाकर बोलदेना कि वो सहि समय पर स्नान अदि से निर्वित होकर व्रत के साथ तत्पर रहे !

रावण ने अपने लोगो को बुलाकर उनसे कहा कि पुजन सामग्री तैयार कि जाये , इसके उपरांत रावण माँ  सीता के पास जाकर बोले " समुद्र के उस पार मेरे यजमान और तुम्हारे पति ने लंका विजय के लिये यज्ञ का आयोजन किया हैं  और उसके  लिए मुझे अपने आचार्य के रूप में बुलाया हैं ,चूँकि मेरे यजमान वनवासी हैं ,घर से बाहर हैं  तो उनकि  अर्धांगिनी कि व्यवस्था करना भी मेरे जिम्मे हैं ,इसलिए मै तुम्हे आदेश देता हुँ ये पुष्पक विमान खड़ा हैं इसमें जाकर बैठ जाओ और  कि मेरे साथ चलकर मेरे यजमान का पुजन सफल करो और हाँ याद रहे वहा पर भी तुम मेरी ही संरक्षा ( कैद ) में रहोगी ! 
सीता : ये सुनकर माँ सीता ने आचार्य रावण  को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा जो आज्ञा आचार्य !
रावण : (आशीर्वाद ) में कहा " अखण्ड सौभाग्यवती भवः " !!

आचार्य रावण और माता सीता पुष्पक विमान से समुद्र के उस पार श्री राम के पास पहुचगये ! उस समय प्रभु राम और लक्ष्मण ने उठ कर हाथ जोड़कर आचार्य रावण को प्रणाम किया और श्री राम ने कहा आचार्य मै आपका यजमान लंका विजय के लिए यज्ञ कर रहा हुँ और यहाँ भगवान शंकर का विग्रह (शिवलिंग) स्थापित करना चाहता हुँ ,जिससे भगवान शंकर खुश होकर मुझे विजय श्री  का आशिर्वाद दे !
रावण : यजमान मै आपके यज्ञ को अच्छी तरह से सम्पादित करूँगा और भगवान शंकर ने चाहा तो आपको इस यज्ञ का फल पुर्ण रूप से मिलेगा ! आप पुजन कि तैयारी कीजिये। 
राम : हनुमान भगवान शंकर का विगृह (शिवलिंग) लेने गए हैं ! बस हनुमान का इंतज़ार हैं। 
रावण :पुजन में देरी संभव नहीं हैं और मुहूर्त में यज्ञ शुरू होना चाहिए  ,आप बैठिये और आपकी धर्म पत्नि कहा हैं उन्हें बुलाइये  !
राम: आचार्य मेरी धर्म पत्नि तो यहाँ उपस्थित नहीं हैं , कोई ऐसी शास्त्रीय विधि जिसमें उनकि  अनुपस्थिति में  ये यज्ञ पुर्ण हो सके !
रावण :ऐसा तो संभव नहीं हैं ,ऐसा तो केवल इन तीन परिस्थितियों में ही संभव हैं (एक -आप विदुर हो आपकी धर्म पत्नि नहीं हो  * दूसरी - आप अविवाहित हो आपका विवाह नहीं हुआ हो * तीसरा -आपको आपकी पत्नि ने त्याग दिया हो ) क्या इनमे से कोई स्थिति हैं ?
राम:नहीं आचार्य इनमे से कोई भी स्थिति नहीं हैं !
जामवंत : आचार्य इसकी क्या व्यवस्था है ?
रावण : क्योंकि यजमान वनवासी हैं तो शास्त्रीय विधि के अनुसार आचार्य कि जिम्मेदारी हैं कि यज्ञ में जरुरत के सभी साधन उपलब्ध करवाये ,तो आप विभीषण के साथ अपने मित्रो को भेजकर मेरे पुष्पक विमान में मेरी अर्द्ध यजमान देवी सीता बैठी हैं उन्हें बुलवालाओ !
इसके बाद विधिवत पूजन हुआ और माँ सीता ने अपने हाथों से शिवलिंग की स्थापना की जो आज भी लंकेश्वर के नाम से विराजमान हैं ! उसके बाद हनुमान भी एक शिवलिंग लेकर आगये और बोले प्रभु शिवलिंग मेरे द्वारा लाया हुआ विराजमान करे और स्थापित किये हुए शिवलिंग को हटा दिया जाये ,इसपर श्री राम प्रभु ने सोचा हनुमान को अपने पद का अहंकार हो गया हैं , प्रभु राम ने कहा ठिक हैं तुम स्थापित शिवलिंग को हटाकर तुम्हारे लाये हुए शिवलिंग को स्थापित करदो ! परन्तु कहते है कि हनुमान ने अपनी पुरी शक्ति लगा ली परन्तु वो शिवलिंग को हिला भी न सके , इसके उपरांत श्री राम ने वरदान दिया कि तुम्हारे द्वारा लाया हुआ शिवलिंग भी यहाँ स्थापित रहेगा और हनुमानेश्वर  के नाम से विख्यात होगा !
और इस तरह यज्ञ विधिवत सम्पूर्ण हुआ ! रामायण प्रषंग 


प्रषंग -२ 

इस ज्‍योतिर्लिंग की स्‍थापना के पीछे एक कहानी और प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान राम जब लंका पर विजय प्राप्‍त करके लौट रहे थे तो उन्‍होंने गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया और वहां पर ऋषि मुनियों ने श्रीराम को बताया कि रावण एक ब्राह्मण था। उसका वध करने से उन पर ब्रह्महत्‍या का दोष लगा है, जो शिवलिंग की स्‍थापना करके ही दूर हो सकता है।

सावन के महीने में रामेश्वरम में जलाभिषेक करने का बहुत महत्‍व है। मान्‍यता तो यह भी है कि रामेश्‍वरम में शिव की पूजा विधिवत करने से ब्रह्महत्‍या जैसे दोष से भी मुक्ति मिल जाती है। रामेश्‍वरम को दक्षिण भारत का काशी कहा जाता है। यहां की धरती को भी भोलेबाबा और मर्यादा पुरुषोत्‍तम श्रीराम की कृपा से मोक्ष देने का आशीर्वाद प्राप्‍त है।

जय  सिया राम * *राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम ** जय सिया राम 

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