Friday, April 24, 2020

गोरक्ष चालीसा

 शिव गोरक्ष 

गोरक्ष चालीसा 


* दोहा *
गणपति गिरजा पुत्र को ,सिमरूं बारम्बार | 
हाथ जोड़ विनती करुं ,शारद नाम आधार || 

जय जय जय गोरक्ष अविनाशी | 
कृपा करो गुरु देव प्रकाशी || 

जय जय जय गोरक्ष गुण ज्ञानी | 
इच्छा रूप योगी वरदानी || 

अलख निरंजन तुम्हरो नामा | 
सदा करो भक्तन हित कामा || 

नाम तुम्हारो जो कोई गावैं | 
जन्म जन्म के दुःख मिट जावै || 

जो कोई गोरक्ष नाम सुनावै | 
भूत - पिशाच निकट नहीं आवै || 

ज्ञान तुम्हारा योग से पावै | 
रूप तुम्हारा लख्या न जावै || 

निराकार तुम हो निर्वाणी | 
महिमा तुम्हारी वेद न जानी || 

घट - घट के तुम अन्तर्यामी | 
सिद्ध चौरासी करें प्रणामी || 

भस्म अंग गल नाद विराजे | 
जटा शीश अति सुन्दर साजे || 

तुम बिन देव और नहीं दूजा | 
देव मुनि जन करते पूजा || 

चिदानंद संतन हितकारी | 
मंगल करण अमंगल हारी || 

पूर्ण ब्रह्म सकल घट वासी | 
गोरक्ष नाथ सकल प्रकाशी || 

गोरक्ष गोरक्ष जो कोई ध्यावै | 
ब्रह्म रूप के दर्शन पावै || 

शंकर रूप धर डमरू बाजै | 
कानन कुण्डल सुन्दर साजै || 

नित्यानंद है नाम तुम्हारा | 
असुर मार भक्तन रखवारा || 

अति विशाल है रूप तुम्हारा | 
सुर नर मुनि जन पवै न पारा || 

दीनबंधु दिनन हितकारी | 
हरो पाप हम शरण तुम्हारी || 

योग युक्ति में हो प्रकाश | 
सदा करो संतन तन बासा || 

प्रातः काल ले नाम तुम्हारा | 
सीधी बढे अरु योग प्रचारा || 

हठ हठ हठ गोरक्ष हठीले | 
मार मार वैरी के कीले || 

चल चल गोरक्ष विकराला | 
दुश्मन मार करो बेहाला || 

जय जय जय गोरक्ष अविनाशी | 
अपने जन की हरो चौरासी || 

अचल अगम है गोरक्ष योगी | 
सिद्धि देवो हरो रस भोगी || 

काटो मार्ग यम को तुम आई | 
तुम बिन मेरा कौन सहाई || 

अजर अमर है तुम्हारी देहा | 
सनकादिक सब जोरहिं नेहा || 

कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा | 
है प्रसिद्ध जगत उजियारा || 

योगी लखें तुम्हारी माया | 
पार ब्रह्म से ध्यान लगाया || 

ध्यान तुम्हारा जो कोई लावै | 
अष्ट सिद्धि नव निधि पा जावै || 

शिव गोरक्ष है नाम तुम्हारा | 
पापी दुष्ट अधम को तारा || 

अगम अगोचर निर्भय नाथा | 
सदा रहो सन्तन के साथा || 

शंकर रूप अवतार तुम्हारा | 
गोपीचन्द ,भरथरि को तारा || 

सुन लीजो गुरु अरज हमारी | 
कृपा सिन्धु योगी ब्रह्मचारी || 

पूर्ण आस दास की कीजै | 
सेवक जान ज्ञान को दीजै || 

पतित पावन अधम अधारा |
तिनके हेतू तुम लेत अवतारा || 

अलख निरंजन नाम तुम्हारा | 
अगम पंथ जिन योग प्रचारा || 

जय जय जय गोरक्ष भगवाना | 
सदा करो भक्तन कल्याना || 

जय जय जय गोरक्ष अविनाशी | 
सेवा करें सिद्ध चौरासी || 

जो यह पढ़े गोरक्ष चालीसा | 
होय सिद्ध साखी गौरीशा || 

हाथ जोड़ कर ध्यान लगावै | 
और श्रद्धा से रोट चढावै || 

बारह पाठ पढ़ै नित जोई | 
मनोकामना पूर्ण होई || 

* दोहा *
सुने सुनावे प्रेम वश ,पूजे अपने हाथ | 
मन इच्छा सब कामना , पूर्ण करे गोरक्षनाथ ||  

Thursday, April 23, 2020

श्री हनुमान परिचय

ॐ 
श्री हनुमान जी परिचय 
राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम 

अतुलित बलधामं स्वर्ण शैलाभ  देहं ,दनुज -वन कृशानुं ज्ञानिनाम ग्रगग्रगण्यम | 
सकळ गुण निधानं ,वानराणामधीशं , रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामिः || 

ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर हिन्दू धर्म की तीन आधार शिलायें है ,और हर एक की अपनी विशिष्ठता है | ब्रह्मा सृष्टि करता है , श्री विष्णु रक्षक रूप में है और महादेव संहारक रूप में है | हिन्दू धर्म के अन्य सभी देवता गण  इन त्रिमूर्तियों में से किसी एक का अवतार माना जाता है | इन त्रिमूर्तियों में केवल ब्रह्मा ने कोई अवतार नहीं लिया है | श्री हरी विष्णु के दस से अधिक अवतार माने जाते हैं | उनमें से अति प्रसिद्ध एवं विशिस्ट अवतार श्री राम और श्री कृष्ण के हैं | श्री हनुमान जी महाराज को श्री देवादि देव महादेव का अवतार माना जाता हैं | 
हिन्दू पुराण के अनुसार भगवान शिव ने अपनी सारी शक्ति को ग्यारह खंडों या अंशों में विभाजित करके रखा है | चूँकि शिव के ग्यारहवें अंश को विगत काल में राक्षशराज रावण ने अपमानित किया था और उससे नाखुश था इसलिए महादेव ने निश्चय किया की अपने ग्यारहवें अंश का प्रयोग रावण के विरुद्ध लड़ने और भगवन श्री राम की सेवा करने के लिए किया जाए | तदनुसार उन्होंने केसरी द्वारा माँ अंजना के गर्भ से श्री हनुमान के रूप में जन्म लिया | 
हनुमान जी सदैव सरल भक्ति के प्रतीक रहे हैं | वे बच्चो के प्यारे और उनके बीच में प्रसिद्ध रहे हैं ,और हिन्दू संप्रदाय एवं सनातन संस्कृति में सबसे अधिक प्यारे देवता के रूप में माने  जाते है | श्री हनुमान सदगुणों , शक्ति , तेजस , नम्रता , सिद्धि , और धैर्य का सार है | वे उत्साही ,श्री राम के अनन्य भक्त , समर्पित सेवक और बुद्धिमान हैं | हनुमान भगवान श्री राम के भक्ति - साम्राज्य के द्वारपालक हैं | भगवान श्री राम एवं माँ सीता को मिलाने के लिए एक गुरु की तरह भी उन्होंने काम किया है अर्थात उन्होंने आत्मा का परमात्मा के साथ मिलाने का सराहनीय प्रयास किया था | हनुमान का शाब्दिक अर्थ है दांतो का विकृत होना | उन्हें बजरंग भी कहा जाता है जिसका अर्थ वज्र दांत या किसी एक अंग का टेढ़ा होना | कुछ संस्कृतियों में गल्ला गर्व एवं अहं का चिन्ह माना  जाता है और टूटा गल्ला मानव के अहं का भंग माना जाता है | यही हनुमान शब्द का व्यवहारिक या लोकप्रचलित अर्थ है | हनुमान जी के प्रमुख १२ नाम जिनसे हनुमान जी की स्तुति की जाती है :     
(१) हनुमान  * (२) लक्ष्मणप्राणदाता  * (३) दशग्रीवदर्पहा  * (४) रामेष्ट  * (५) फाल्कुनसखा  * (६) पिंगाक्ष  * (७) अमितविक्रम  * (८) उदधिकर्मण *               (९) अंजनीसूत * (१०) वायुपुत्र * (११) महाबल * (१२) सीताशोकविनाशन 

|| जय सिया राम || 

राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम


Wednesday, April 22, 2020

श्री गणेश वन्दना

ॐ 
श्री गणेश वन्दना 
ॐ गं गणपतेय नमः 

सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो ,
खोलो म्हारे हिरदै का ताला जी !
सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो !!

जल चढ़ाऊं देवा कोनी है अछूतो,
जल नै तो मछल्यां बिगाड़यों जी !
     सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो !! (१)

पुष्प चढ़ाऊं देवा कोनी हैं अछूतो ,
पुष्पां नै तो भंवरा बिगाडयों  जी !
      सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो !!(२)

दूध चड़ाऊ देवा कोनी है अछूतो ,
दूध नै तो बछडां बिगाड़यों जी !
    सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो !! (३)

चन्दन चड़ाऊ देवा कोनी है अछूतो,
चन्दन नै तो सर्पा ं बिगाड़यों जी !
    सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो !! (४)

काया चड़ाउ ं देवा कोनी है अछूती ,
काया नै तो कर्मां बिगाड्या जी !
    सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो !! (५)

शब्द चड़ाऊं देवा कोनी है अछूता,
शब्दां नै तो अतीत बिगाड्यां जी !
    सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो !! (६)

प्रेम चड़ाऊं देवा कोनी है अछूतो,
प्रेम से "स्व" स्वरुप पायो जी !
    सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो !! (७)

सात चरण यति गोरक्ष बोल्या,
साँई तेरो ध्यान अनंताः जी !
   सेवा म्हारी  मानो गणपति, पूजा म्हारी मानो !! (८)

ॐ गौरी पुत्राय नमः 
  



Sunday, April 19, 2020

रामेश्वरम शिवलिंग स्थापना प्रषंग

ॐ राम रामाय नमः 

रामेश्वरम शिवलिंग स्थापना




रामेश्वरम शिवलिंग स्थापना: आचार्य रावण 


लंका पर विजय प्राप्‍त करने के लिए भगवान राम ने समुद्र किनारे शिवलिंग बनाकर शिवजी की पूजा की थी। इससे प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने उन्‍हें विजयश्री का आशीर्वाद दिया था। आशीर्वाद के साथ ही श्रीराम ने शिवजी से अनुरोध किया कि जनकल्‍याण कि लिए वे सदैव ज्‍योतिर्लिंग के रूप में यहां निवास करें। उनकी इस प्रार्थना को भोलबाबा ने सहर्ष स्‍वीकार किया और तब से रामेश्वरम में इस शिवलिंग की पूजा हो रही है। यानी यह शिवलिंग त्रेतायुग में स्थापित किया गया। 

परन्तु दक्षिण में लिखी राम कथाओं में महर्षि कम्बन कि इवरामअवताराम (रामायण ) में प्रषंग है जो वाल्मिकी और तुलसि रामायण में प्रायः नहीं हैं , वो प्रषंग अदभुद हैं !! 

महर्षि कम्बन कि रामकथा में लिखे प्रषंग के अनुसार जब प्रभु श्री राम रामेश्वरम पहुंचे तब उन्होंने जामवंत जी से कहा " आप कोई आचार्य या विद्वान पण्डित ढूंढ के लाये जो सैय और वैष्णव परंपरा में निपुण हो " जो मेरा विधिवत यज्ञ करवा सके और भगवान शंकर का विग्रह स्थापित करवा सके !
ये सुनकर जामवंत ने कहा प्रभु यहाँ समुद्र के किनारे जंगल में केवल वृक्ष और वनवासी है और हम में से भी कोई ऐसा मुझे नहीं दीखता है !
एक है जो पलष्त मुनि के नाती है, वैष्णव हैं और भगवान शंकर का भक्त भी हैं ! परन्तु वो हमारा शत्रु हैं !
तब श्री राम ने कहा आप एक बार जाकर बात करिये तो सही , ये सुनकर जामवंत जो आज्ञा कहकर चलदिये ,जब ये बात रावण को पता चली कि  जामवंत मुझसे मिलने आये हैं , तो उन्होंने राक्षसो से कहा "देखो जामवंत आ रहे हैं उन्हें यहाँ महल तक पहुँचने में किसी प्रकार का कष्ट ना हो और उन्हें आदर सहित यहाँ पहुचाये ! जामवंत मेरे पितामाह के मित्र रहे है और इसलिए मेरे लिए सम्माननीय हैं !
तब सभी राक्षश मार्ग में हाथ जोड़कर खड़े हो गए और हाथ जोड़े जोड़े महल का मार्ग बताने के लिए हाथ जोड़े जोड़े इशारा कर देते सभी राक्षश कथा के अनुशार जामवंत का शरीर देखकर भयभीत हो रहे थे !

जब जामवंत महल में पहुंचे तो रावण ने जामवंत के चर्ण स्पर्श करके प्रणाम किया और कहा "मै लंकापति रावण लंकापुरी में आपका स्वागत करता हुँ " कहिये मै आपकी किस प्रकार सेवा कर सकता हुँ ?

जामवंत : लंकापति रावण मै आपके पास मेरे यजमान का यज्ञ करवाने के लिए आपको आचार्य के लिए निवेदन करने के लिए आया हुँ !
रावण : आपके यजमान कौन हैं ?
जामवंत : लंकेश , मेरे यजमान महाराज दशरथ के पुत्र और अयोध्या के राजकुमार श्री राम है ! और वो अपनी किसी विशेष कार्य  हेतु भगवान शंकर का पूजन करना चाहते हैं और उनको कोई योग्य आचार्य चाहिए जो विधि पुर्वक यज्ञ करवाने में कुशल हो !
रावण :स्वीकर्ती से पूर्व मुझे विचार करना पड़ेगा और विचार करने में मुझे समय लगेगा , तो मै चाहता हुँ कि आप आशन ग्रहण करे  "जामवंत बैठ गए" क्या आप मुझे बताएँगे कि वो विशेष कार्य लंका पर विजय तो नहीं हैं ?
जामवंत : लंकेश ,आपने सही समझा उनका वो  विशेष कार्य  लंका पर विजय हि हैं ! क्या अब आप उनके आचार्य बनना स्वीकार करेंगे ?
रावण : (मन में विचार करते हुए कि मुझे आचार्य बनाने के लिए कौन व्यक्ति आया हैं ) निःसंदेह आप जाकर राम से केहदीजिये मै उनका आचार्य बनना स्वीकार करता हुँ !
जामवंत : अति उत्तम लंकेश ! क्या आप मुझे सभि वस्तुए बताएँगे जिनकि आवस्यकता पुजन में होगी ?
रावण : हे ! आदरणीय शाश्त्रो के अनुसार अगर यजमान घर से बाहर हो  तो सभी जरुरी वस्तुओं कि वयवस्था आचार्य को ही करनी होति हैं , आप तो मेरे यजमान से जाकर बोलदेना कि वो सहि समय पर स्नान अदि से निर्वित होकर व्रत के साथ तत्पर रहे !

रावण ने अपने लोगो को बुलाकर उनसे कहा कि पुजन सामग्री तैयार कि जाये , इसके उपरांत रावण माँ  सीता के पास जाकर बोले " समुद्र के उस पार मेरे यजमान और तुम्हारे पति ने लंका विजय के लिये यज्ञ का आयोजन किया हैं  और उसके  लिए मुझे अपने आचार्य के रूप में बुलाया हैं ,चूँकि मेरे यजमान वनवासी हैं ,घर से बाहर हैं  तो उनकि  अर्धांगिनी कि व्यवस्था करना भी मेरे जिम्मे हैं ,इसलिए मै तुम्हे आदेश देता हुँ ये पुष्पक विमान खड़ा हैं इसमें जाकर बैठ जाओ और  कि मेरे साथ चलकर मेरे यजमान का पुजन सफल करो और हाँ याद रहे वहा पर भी तुम मेरी ही संरक्षा ( कैद ) में रहोगी ! 
सीता : ये सुनकर माँ सीता ने आचार्य रावण  को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा जो आज्ञा आचार्य !
रावण : (आशीर्वाद ) में कहा " अखण्ड सौभाग्यवती भवः " !!

आचार्य रावण और माता सीता पुष्पक विमान से समुद्र के उस पार श्री राम के पास पहुचगये ! उस समय प्रभु राम और लक्ष्मण ने उठ कर हाथ जोड़कर आचार्य रावण को प्रणाम किया और श्री राम ने कहा आचार्य मै आपका यजमान लंका विजय के लिए यज्ञ कर रहा हुँ और यहाँ भगवान शंकर का विग्रह (शिवलिंग) स्थापित करना चाहता हुँ ,जिससे भगवान शंकर खुश होकर मुझे विजय श्री  का आशिर्वाद दे !
रावण : यजमान मै आपके यज्ञ को अच्छी तरह से सम्पादित करूँगा और भगवान शंकर ने चाहा तो आपको इस यज्ञ का फल पुर्ण रूप से मिलेगा ! आप पुजन कि तैयारी कीजिये। 
राम : हनुमान भगवान शंकर का विगृह (शिवलिंग) लेने गए हैं ! बस हनुमान का इंतज़ार हैं। 
रावण :पुजन में देरी संभव नहीं हैं और मुहूर्त में यज्ञ शुरू होना चाहिए  ,आप बैठिये और आपकी धर्म पत्नि कहा हैं उन्हें बुलाइये  !
राम: आचार्य मेरी धर्म पत्नि तो यहाँ उपस्थित नहीं हैं , कोई ऐसी शास्त्रीय विधि जिसमें उनकि  अनुपस्थिति में  ये यज्ञ पुर्ण हो सके !
रावण :ऐसा तो संभव नहीं हैं ,ऐसा तो केवल इन तीन परिस्थितियों में ही संभव हैं (एक -आप विदुर हो आपकी धर्म पत्नि नहीं हो  * दूसरी - आप अविवाहित हो आपका विवाह नहीं हुआ हो * तीसरा -आपको आपकी पत्नि ने त्याग दिया हो ) क्या इनमे से कोई स्थिति हैं ?
राम:नहीं आचार्य इनमे से कोई भी स्थिति नहीं हैं !
जामवंत : आचार्य इसकी क्या व्यवस्था है ?
रावण : क्योंकि यजमान वनवासी हैं तो शास्त्रीय विधि के अनुसार आचार्य कि जिम्मेदारी हैं कि यज्ञ में जरुरत के सभी साधन उपलब्ध करवाये ,तो आप विभीषण के साथ अपने मित्रो को भेजकर मेरे पुष्पक विमान में मेरी अर्द्ध यजमान देवी सीता बैठी हैं उन्हें बुलवालाओ !
इसके बाद विधिवत पूजन हुआ और माँ सीता ने अपने हाथों से शिवलिंग की स्थापना की जो आज भी लंकेश्वर के नाम से विराजमान हैं ! उसके बाद हनुमान भी एक शिवलिंग लेकर आगये और बोले प्रभु शिवलिंग मेरे द्वारा लाया हुआ विराजमान करे और स्थापित किये हुए शिवलिंग को हटा दिया जाये ,इसपर श्री राम प्रभु ने सोचा हनुमान को अपने पद का अहंकार हो गया हैं , प्रभु राम ने कहा ठिक हैं तुम स्थापित शिवलिंग को हटाकर तुम्हारे लाये हुए शिवलिंग को स्थापित करदो ! परन्तु कहते है कि हनुमान ने अपनी पुरी शक्ति लगा ली परन्तु वो शिवलिंग को हिला भी न सके , इसके उपरांत श्री राम ने वरदान दिया कि तुम्हारे द्वारा लाया हुआ शिवलिंग भी यहाँ स्थापित रहेगा और हनुमानेश्वर  के नाम से विख्यात होगा !
और इस तरह यज्ञ विधिवत सम्पूर्ण हुआ ! रामायण प्रषंग 


प्रषंग -२ 

इस ज्‍योतिर्लिंग की स्‍थापना के पीछे एक कहानी और प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान राम जब लंका पर विजय प्राप्‍त करके लौट रहे थे तो उन्‍होंने गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया और वहां पर ऋषि मुनियों ने श्रीराम को बताया कि रावण एक ब्राह्मण था। उसका वध करने से उन पर ब्रह्महत्‍या का दोष लगा है, जो शिवलिंग की स्‍थापना करके ही दूर हो सकता है।

सावन के महीने में रामेश्वरम में जलाभिषेक करने का बहुत महत्‍व है। मान्‍यता तो यह भी है कि रामेश्‍वरम में शिव की पूजा विधिवत करने से ब्रह्महत्‍या जैसे दोष से भी मुक्ति मिल जाती है। रामेश्‍वरम को दक्षिण भारत का काशी कहा जाता है। यहां की धरती को भी भोलेबाबा और मर्यादा पुरुषोत्‍तम श्रीराम की कृपा से मोक्ष देने का आशीर्वाद प्राप्‍त है।

जय  सिया राम * *राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम ** जय सिया राम 

Saturday, April 11, 2020

रामायण : उर्मिला चरित्र एवं त्याग चर्चा

ॐ राम रामाय नमः 

रामायण : उर्मिला चरित्र एवं त्याग चर्चा 



उर्मिला' संभवतया रामायण की सर्वाधिक उपेक्षित पात्र है.. जब भी रामायण की बात आती है तो हमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम याद आते हैं जो अपने पिता के वचन के लिए १४ वर्षों के वन को चले गए थे.. हमें देवी सीता याद आती हैं जो अपने पति के पीछे-पीछे वन की और चल दी..एक आदर्श भाई महापराक्रमी लक्ष्मण याद आते हैं जिन्होंने श्रीराम के लिए अपने जीवन का हर सुख त्याग दिया.. भ्रातृ प्रेम की मिसाल भरत याद आते हैं जिन्होंने अयोध्या में एक वनवासी सा जीवन बिताया..महाज्ञानी और विश्वविजेता रावण याद आता है जो धर्म कर्म  से पंडित होते हुए अनीति कर बैठा.. महावीर हनुमान, कुम्भकर्ण और मेघनाद याद आते हैं..

किन्तु इन सभी मुख्य पात्रों के बीच हम लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला को भूल जाते हैं.. उसके दुःख, त्याग और विरह वेदना को भूल जाते हैं जबकि शायद उसने देवी सीता से भी कहीं अधिक दुःख झेला..वनवास से वापस आने के बाद सीता उर्मिला से रोते हुए गले मिलती है और कहती है कि "हे सखि! तुम्हारे दुःख का ज्ञान भला लक्ष्मण को क्या होगा? मैं समझ सकती हूँ..१४ वर्ष मैंने चाहे वनवास में ही गुजारे किन्तु तब भी मुझे मेरे पति का सानिध्य प्राप्त था किन्तु तुम ने १४ वर्ष अपने पति की विरह में बिताये हैं इसीलिए तुम्हारा त्याग मेरे त्याग से कहीं अधिक बड़ा है.."

उर्मिला जनकपुरी के राजा महाराज जनक और रानी सुनैना की द्वितीय पुत्री और सीता की छोटी बहन थी.. जब श्रीराम ने स्वयंवर जीत कर देवी सीता का वरण किया तो महर्षि विश्वामित्र के सुझाव पर महाराज जनक ने सीता के साथ अपनी दूसरी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण के साथ तथा अपने छोटे भाई क्षीरध्वज की पुत्रिओं मांडवी और श्रुतकीर्ति का विवाह क्रमशः भरत और शत्रुघ्न के साथ तय किया..चारो बहनें एक साथ ही जनकपुरी से अयोध्या आयीं..लक्ष्मण और उर्मिला के अंगद और चंद्रकेतु नामक दो पुत्र और सोमदा नाम की एक पुत्री हुए...वाल्मीकि रामायण में उन्हें रूप, गुण एवं तेज में सीता के समान ही कहा गया है जिसने अल्प समय में ही अयोध्या में सभी का ह्रदय जीत लिया...
जब श्रीराम को वनवास हुआ तो उनके लाख समझाने के बाद भी देवी सीता उनके साथ चलने को तैयार हुई.. उधर लक्ष्मण तो राम के प्राण ही थे, वे कैसे उनका साथ छोड़ सकते थे.. इसलिए वे भी वन चलने को तैयार हुए..जब उर्मिला को पता चला कि लक्ष्मण भी वन जाने को प्रस्तुत हैं तब वे भी वल्कल वस्त्र धारण कर उनके पास आई और वन चलने का अनुरोध किया.. इस पर लक्ष्मण ने कहा "उर्मिले! तुम मेरी दुविधा को समझने का प्रयास करो... मेरे वन जाने का उद्देश्य केवल इतना है कि मैं वहाँ भैया और भाभी की सेवा कर सकूँ.तुम्हारे सानिध्य से मुझे सुख ही मिलेगा किन्तु तुम्हारे वहाँ होने पर मैं अपने इस कर्तव्य का वहाँ पूरी तरह से नहीं कर सकूँगा.. अतः तुम्हे मेरी सौगंध है कि तुम यहीं रहकर मेरे वृद्ध माँ-बाप की सेवा करो.." इसपर उर्मिला रोते हुए कहती हैं कि "आपने मुझे अपनी सौगंध दे दी है तो अब मैं क्या कर सकती हूँ? किन्तु मैं ये सत्य कहती हूँ कि चौदह वर्षों के पश्चात जब आप वापस आएंगे तो मुझे जीवित नहीं देख पाएंगे.. आपके विरह में इसी प्रकार रो-रो कर मैं अपने प्राण त्याग दूँगी.." तब लक्ष्मण फिर कहते हैं "प्रिये! अगर तुम इस प्रकार विलाप करोगी तो मैं किस प्रकार वन जा पाउँगा.. इसलिए मैं तुम्हे एक और सौगंध देता हूँ कि मेरे लौट के आने तक तुम किसी भी परिस्थिति में रोना मत.." यही कारण था जब लक्ष्मण लौट कर आये तो उर्मिला कई दिनों तक रोती रही..
देवी उर्मिला के भीतर का अंतर्द्वंद समझा जा सकता हैं.. १४ वर्षों तक ना केवल वो अपने पति की विरह में जलती रही वरन अपने आसुंओं को भी रोक कर रखा.. यहाँ तक कि जब महाराज दशरथ का स्वर्गवास हुआ तो भी वे लक्ष्मण को दिए अपने वचन के कारण रो ना सकी..जब भरत अयोध्या वापस आते हैं और उन्हें श्रीराम के वनवास का समाचार मिलता है तो वे अपनी माता कैकेयी की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हैं और उसके बाद तीनो माताओं, गुरुजनों और मंत्रियों को लेकर श्रीराम को वापस लेने के लिए चल देते हैं.. उस समय उर्मिला उनके पास आती हैं और उन्हें भी अपने साथ ले चलने को कहती हैं.इस पर भरत उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि "उर्मिला! तुम इतना व्यथित क्यों होती हो? तुम्हारी व्यथा मैं समझ सकता हूँ किन्तु तुम्हे यात्रा का कष्ट सहन करने की क्या आवश्यकता है? बस कुछ ही दिनों की बात है, मैं तुम्हारे पति को साथ लेकर ही लौटूँगा.मैंने ये निश्चय किया है कि भैया, भाभी और लक्ष्मण को वापस लाने से मुझे विश्व की कोई शक्ति नहीं रोक सकती.. अतः तुम अधीरता त्यागो और अपने पति के स्वागत की तयारी करो.." जब श्रीराम अपने वचन की बाध्यता के कारण भरत के साथ आने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हैं तो भरत अयोध्या वापस आकर उर्मिला से कहते हैं "मैं सबसे अधिक तुम्हारा दोषी हूँ.. मेरे ही हठ के कारण तुम्हारे पास अपने पति के सानिध्य का जो एक अवसर था वो तुम्हे प्राप्त नहीं हुआ अतः तुम मुझे क्षमा कर दो..

उर्मिला के विषय में उसकी निद्रा बड़ी प्रसिद्ध है जिसे "उर्मिला निद्रा" कहा जाता है...अपने १४ वर्ष के वनवास में लक्ष्मण एक रात्रि के लिए भी नहीं सोये.. जब निद्रा देवी ने उनकी आँखों में प्रवेश किया तो उन्होंने निद्रा को अपने बाणों से बींध दिया.. जब निद्रा देवी ने कहा कि उन्हें अपने हिस्से की निद्रा किसी और को देनी होगी तब लक्ष्मण ने अपनी निद्रा उर्मिला को दे दी..इसीलिए कहते हैं कि लक्ष्मण वन में १४ वर्षों तक जागते रहे और उर्मिला अयोध्या में १४ वर्षों तक सोती रही.. दक्षिण भारत में आज भी कुम्भकर्ण निद्रा के साथ-साथ उर्मिला निद्रा का भी जिक्र उन लोगों के लिए किया जाता है जिसे आसानी से जगाया ना सके.. ये इसलिए भी जरुरी था कि रावण के पुत्र मेघनाद को ये वरदान प्राप्त था कि उसे केवल वही मार सकता है जो १४ वर्षों तक सोया ना हो.. यही कारण था जब श्रीराम का राज्याभिषेक हो रहा था तो अपने वचन के अनुसार निद्रा देवी ने लक्ष्मण को घेरा और उनके हाथ से छत्र छूट गया..इसी कारण वे सो गए और राम का राज्याभिषेक नहीं देख पाए..उनके स्थान पर उर्मिला ने राज्याभिषेक देखा.. 
 एक तरह से कहा जाये तो मेघनाद के वध में उर्मिला का भी उतना ही योगदान है जितना कि लक्ष्मण का.. जब लक्ष्मण के हाँथों मेघनाद की मृत्यु हो गयी तो उसकी पत्नी सुलोचना वहाँ आती है और क्रोध पूर्वक लक्ष्मण से कहती है "हे महारथी! तुम इस भुलावे में मत रहना कि मेरे पति का वध तुमने किया है.. ये तो दो सतियों के अपने भाग्य का परिणाम है..यहाँ पर सुलोचना ने दूसरे सती के रूप में उर्मिला का ही सन्दर्भ दिया है.. यहाँ एक प्रश्न और आता है कि अगर उर्मिला १४ वर्षों तक सोती रही तो उसने अपने पति के आदेशानुसार अपने कटुम्ब का ध्यान कब रखा..इसका जवाब हमें रामायण में ही मिलता है कि उर्मिला को ये वरदान था कि वो एक साथ तीन-तीन जगह उपस्थित हो सकती थी और तीन अलग-अलग कार्य कर सकती थी और उनका ही एक रूप १४ वर्षों तक सोता रहा..
वाकई उर्मिला के विरह और त्याग को जितना समझा जाये उतना कम है..शायद इसीलिये सीता ने एक बार कहा था,"हजार सीता मिलकर भी उर्मिला के त्याग की बराबरी नहीं कर सकती'..
धन्य  है वो युग..धन्य है वो लोग ...जिसने उर्मिला का त्याग देखा..धन्य है वो भारत भूमि जहां उर्मिला जन्मी...

क्या आप जानते है : श्री लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे ??

ॐ  राम रामाय नमः 

रामायण में कुछ अनजाने सत्य !!

क्या आप जानते है : श्री लक्ष्मण ही मेघनाद  का वध कर सकते थे ??




 केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे , क्या कारण था ?..

     हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है। लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी। लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है।  अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया ।

    भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा ॥

     अगस्त्य मुनि बोले- श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥ उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥ 
    ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥ लक्ष्मण ने उसका वध किया, इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥

    श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे॥ फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥

     अगस्त्य मुनि ने कहा- प्रभु इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो.....

  (१) चौदह वर्षों तक न सोया हो,

   (२) जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो, और

   (३) चौदह साल तक भोजन न किया हो ॥

       श्रीराम बोले- परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा ॥ 
    मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है ॥

     अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए॥ प्रभु से कुछ छुपा है भला! दरअसल, सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे, लेकिन प्रभु चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो ॥

   अगस्त्य मुनि ने कहा – क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए ॥

    लक्ष्मणजी आए प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा॥

     प्रभु ने पूछा- हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ?, फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे ?, और १४ साल तक सोए नहीं ? यह कैसे हुआ ?

    लक्ष्मणजी ने बताया- भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा ॥   
  
    आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं.

    चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए – आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे. मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था. निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था॥

      निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी ॥ 

     आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था।

    अब मैं १४ साल तक अनाहारी कैसे रहा! मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे. एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो॥ 
     आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे?

      मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया॥ सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे ॥ प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया॥ फलों की गिनती हुई, सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे॥

    प्रभु ने कहा- इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था?

     लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया- उन सात दिनों में फल आए ही नहीं :—

१--जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे॥

२--जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता॥

३--जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे, ।

४--जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे,।

५--जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे,।

६--जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी,

७--और जिस दिन आपने रावण-वध किया ॥

  इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी॥ विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था- बिना आहार किए जीने की विद्या. उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया ॥

    भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया ।

         जय सियाराम जय जय राम        
     जय  शेषावतार लक्ष्मण भैया की
     जय संकट मोचन वीर हनुमान की

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Friday, April 10, 2020

ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम्

ॐ 

#श्रीहरिः

             || ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम् || 

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मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः ॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः ॥

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥

      ॥ इति श्रीऋणमोचकमङ्गलस्तोत्रमं सम्पूर्णम् ॥
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                                                               "हे नाथ ! हे मेरे नाथ !! मैं आपको भूलूँ नहीं !!!"    
                                                                           ॥ श्रीहरिः शरणम् ॥
                                                                     

श्री सीता राम जय जय राम

ॐ 
श्री सीता राम जय जय राम 



मै केहि कहौं विपत्ति अति भारी | 
श्री रघुवीर धीर हितकारी  | १ | 

मम ह्रदय भवन प्रभु तोरा  | 
तहँ बसे आइ बहु चोरा | २ | 

तहँ कठिन करहिं बरजोरा | 
मानहिं नहि विनय निहोरा | ३ | 

तम, मोह  लोभ, अहँकारा | 
मद , क्रोध , बोध -रिपु मारा | ४ | 

अति करहिं उपद्रव नाथा | 
मरदहिं मोहि जानि अनाथा | ५ | 

मैं एक , अमित बटपारा | 
कोउ सुनै  न मोर पुकारा | ६ | 

भागेहू  नहिं नाथ ! उबारा | 
रघुनायक, करहुँ सँभारा | ७ | 

कह तुलसीदास सुनु रामा | 
लूटहिं तसकर तव धामा | ८ | 

चिंता यह मोहिं  अपारा | 


अपजस नहिं होइ तुम्हारा | ९ |

Wednesday, April 8, 2020

हनुमान जी के १२ नमो कि महिमा

राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम 

ॐ 
* हनुमान जी के १२ नामो कि महिमा *

* स्तुति *

हनुमानअंजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगाक्षोअमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चेव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।


हनुमान*
  हनुमानजी का यह नाम इसलिए पड़ा क्योकी एक बार क्रोधित होकर देवराज इंद्र ने इनके ऊपर अपने वज्र प्रहार किया था यह वज्र सीधे इनकी ठोड़ी (हनु) पर लगा। हनु पर वज्र का प्रहार होने के कारण ही इनका नाम हनुमान पड़ा ।

लक्ष्मणप्राणदाता
 जब रावण के पुत्र इंद्रजीत ने शक्ति का उपयोग कर लक्ष्मण को बेहोश कर दिया था, तब हनुमानजी  संजीवनी बूटी लेकर आए थे। उसी बूटी के प्रभाव से  लक्ष्मण को होश आया था।इस लिए  हनुमानजी को लक्ष्मणप्राणदाता भी कहा जाता है ।

दशग्रीवदर्पहा
दशग्रीव यानी रावण और दर्पहा यानी धमंड तोड़ने वाला ।हनुमानजी ने लंका जाकर सीता माता का पता लगाया, रावण के पुत्र अक्षयकुमार का वध किया साथ ही लंका में आग भी लगा दी ।इस प्रकार हनुमानजी ने कई बार रावण का धमंड तोड़ा था।इसलिए इनका एक नाम ये भी प्रसिद्ध है  

रामेष्ट
 *हनुमान भगवान श्रीराम के परम भक्त हैं । धर्म ग्रंथों में अनेक स्थानों पर वर्णन मिलता है कि श्रीराम ने हनुमान को अपना प्रिय माना है । भगवान श्रीराम को प्रिय होने के कारण ही इनका एक नाम रामेष्ट भी है ।

फाल्गुनसुख
 *महाभारत के अनुसार, पांडु पुत्र अर्जुन का एक नाम फाल्गुन भी है । युद्ध के समय हनुमानजी अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजित थे । इस प्रकार उन्होंने अर्जुन की सहायता की । सहायता करने के कारण ही उन्हें अर्जुन का मित्र कहा गया है । फाल्गुन सुख का अर्थ है अर्जुन का मित्र ।

पिंगाक्ष
  *पिंगाक्ष का अर्थ है भूरी आंखों वाला ।अनेक धर्म ग्रंथों में हनुमानजी का वर्णन किया गया है । उसमें हनुमानजी को भूरी आंखों वाला बताया है । इसलिए इनका एक नाम  पिंगाक्ष भी है ।

अमितविक्रम
  *विक्रम का अर्थ है पराक्रमी और अमित का अर्थ है बहुत अधिक । हनुमानजी ने अपने पराक्रम के बल पर ऐसे बहुत से कार्य किए, जिन्हें करना देवताओं के लिए भी कठिन था । इसलिए इन्हें अमितविक्रम भी कहा जाता हैं ।

उदधिक्रमण
  *उदधिक्रमण का अर्थ है समुद्र का अतिक्रमण करने वाले यानी लांधने वाला । सीता माता की खोज करते समय हनुमानजी ने समुद्र को लांधा था। इसलिए इनका एक नाम ये भी है ।

अंजनीसूनु
 *माता अंजनी के पुत्र होने के कारण ही हनुमानजी का एक नाम अंजनीसूनु भी प्रसिद्ध है ।

वायुपुत्र
 *हनुमानजी का एक नाम वायुपुत्र भी है । पवनदेव के  पुत्र होने के कारण ही इन्हें वायुपुत्र भी कहा जाता है ।

महाबल
  *हनुमानजी के बल की कोई सीमा नहीं हैं । इसलिए इनका एक नाम महाबल भी है ।

सीताशोकविनाशन
  *माता सीता के शोक का निवारण करने के कारण हनुमानजी का ये नाम पड़ा ।


धर्म ग्रंथों में हनुमानजी के ये 12 नाम बताए गए हैं, जिनके द्वारा उनकी स्तुति की जाती है। गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीहनुमान अंक के अनुसार हनुमानजी के इन 12 नामों का जो रात में सोने से पहले व सुबह उठने पर अथवा यात्रा प्रारंभ करने से पहले पाठ करता है, उसके सभी भय दूर हो जाते हैं और उसे अपने जीवन में सभी सुख प्राप्त होते हैं। वह अपने जीवन में अनेक उपलब्धियां प्राप्त करता है। 

राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम  राम 


* राम *








Psychology of money earning

The psychology behind earning money is fascinating! People's motivations vary—some are driven by financial security, others by the desir...